में सुन रहा हूँ.. Me Sun Raha Hun Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में सुन रहा हूँ.. Me Sun Raha Hun

में सुन रहा हूँ

तुम ऐसे आये जीवन में
एक बहार सी छा गयी उपवन में
कुछ कहना चाहते थे हम
पर बहाने करते गए तुम।

हमने सोचा 'मंज़िल पा गए'
पर ये क्या हुआ 'आप छूमंतर हो गए'?
किनारा हम देखते रहे
आप बस दूर से हँसते रहे।

खेर हमारे मन में आपकी खिलखिलाहट थी
थोड़ी सी हैरानी और बोखलाहट भी छायी हुई थी
पर मन में गुरुर जरूर था
मंज़िल को जो हमने पाना था?

मंज़िल तो नहीं मिली
पर याद में वो छायी जरूर मिली
हमने शायद कम आंका था
वो भी तो बस एक तकाजा था।

गुलशन की वो शान थी
हमारी भी tej tarrah मेहमान थी
दिल पे जरूर छायी रहती थी
पर मंज़िल की याद जरूर दिलाया करती थी।

रूठना और फिर मनाना
मजा आता है करने का सामना
पर दिल कहा है कैसे उनको अपनाना?
आप कहोगी 'वकत जाया न करो अपना।

सोचा था हमने कुछ तो आसान होगा!
पहचान का सिलसिला बनके रहेगा
पर वो तो नदी की तरह उफान में थी
अपने गुरुर में एक पहचान सी बनायीं हुई थी।

आज हम उन्हें शांत जल की तरह देख रहे है
वो भी हमारी बात ध्यान से सुन रहे है
'में कहाँ गयी हूँ? यहां तो हूँ?
में सुन रहा हूँ, बस सुन ही रहा हूँ

Friday, October 17, 2014
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 October 2014

welcome Ramesh Thumati Alagarsamy Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 October 2014

Hasmukh Mehta welcome Partha Ghosh, Thel Suaidi, Maithili Roy Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 October 2014

Hasmukh Mehta welcome manzil rajput n samuel owusu sefa Just now · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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