Meera Poem by Megha Bairwa

Meera

Rating: 5.0

मैं तो तेरी मीरा छलिए
राधा कहाँ से होऊँ।
इक मिला तेरा तन मन
मैं बस बाट जोऊँ।

इक रूठे तू जान मनाए
मुझ रूठी कौन मनाए।
मैं तो तेरी मीरा छलिए
राधा कहाँ से होऊँ।

इक व्याकुल हे प्रेम को तेरे
मैं बस दरस को व्याकुल।
तेरी एक झलक पाने को
पग पग छाना गोकुल।

इक करे श्रिंगार तेरे लई
मैं तो सुध बुध खोई।
बैरागन सी घूमूँ बन में
मैं तो बावरी होई।

इक देखे जग में तुझको
मैं जग तुझमें देखूँ।
जो दिख जाए इक वारी तू
तो मैं और क्या देखूँ।

मैं तो तेरी मीरा छलिए
राधा कहाँ से होऊँ।
इक मिला तेरा तन मन
मैं बस बाट जोऊँ।

Mgh

Monday, June 4, 2018
Topic(s) of this poem: sad
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