एक ओर तो नारी शक्ति को,
दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी जैसे अनेक रूपों में हम पूजते,
देवी को प्रसन्न करने हेतु व्रत रखते, पूजा- अर्चना करते,
और वहीं दूसरी ओर देवी के जीवंत रूप,
यानि बहनों, बेटियों और बहुओं को अपनी जलील हरकतों से
शर्मसार करने का कोई अवसर नहीं चूकते |
ये कैसी hypocrisy है, ये कैसा double-standard है?
सरस्वती और दुर्गा पूजा में देवी की अलौकिक दिव्य प्रतिमा की
धूप-दीप, शंख और घंटियों की गूंज के साथ,
अत्यंत भक्ति-भाव से आरती उतारते,
और पूजा पंडालों के बाहर, नारियों को बुरी नज़र से निहारते |
सड़क हो, बस-रेल हो, बाग-बगान हो या खेत-खलिहान,
हर जगह लुट रहा है नारी का सम्मान |
लाखों अनुयायियों वाले नेता और समाज के ठेकेदार,
कहते हैं - गरीबी हटा ओ, भ्रष्टाचार मिटाओ,
पर कोई अपने अनुयायियों को ये नहीं कहता
कि जहाँ भी तुम्हारे सामने किसी नारी के साथ कुछ गलत हो रहा हो,
सब मिलकर खड़े हो जाओ, करो पुरजोर विरोध गुंडों का,
और उन्हें छठी का दूध याद दिला ओ |
जबतक निर्भय होकर नारी नहीं रख सकती घर के बाहर कदम,
तबतक व्यर्थ है भरना सभ्य समाज का दम |
अलौकिक है माँ की ममता, बहन-बेटी का स्नेह और पत्नी का प्रेम,
हँसी-खुशी, निर्भय और निश्चिंत जीवन जीने का है उन्हें भी अधिकार |
बंद करो पग-पग पर यूं नारी का करना अपमान,
अन्यथा कभी नहीं मिलेगा तुम्हें देवी का वरदान |
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samrthan karta huu