पलभर Pal Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पलभर Pal

पलभर

जिंदगी से मुझे प्यार आ गया
हवा के एक झोके से में शर्मा गया
बहार थी चारो और फिर इश्कि बहार का क्या कहना?
में मन में चलते कुविचार कैसे कर सकते थे सामना?

हमने सोचा बहुत हो गया अकेलापन
अब तो हो जाए इतका समापन
मै तो चला नैसर्गिक गोद में
बस सिर्फ एक स्वर्गिक सोच और याद में।

क्या फूल थे?
क्या रंग थे?
सब हँसते ही तो थे
मेरा मजाक उड़ा रहे थे।

में पलभर अपने आपको भूल गया
सही मायनो में खो गया
आज पता पड़ा प्यार क्या होता है
जो गैर होकर अपना सा लगे वो ही प्यार है।

बस अपना जीवन अपना है
खामोश कभी नहीं रहना है
सब से बाते और साथ रहना है
हो सकता मीठापन जवान पर रखना है।

पलभर Pal
Saturday, August 12, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 12 August 2017

बस अपना जीवन अपना है खामोश कभी नहीं रहना है सब से बाते और साथ रहना है हो सकता मीठापन जवान पर रखना है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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