पर लाज तुही रखना.. par laaj tuhi
मैंने कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा!
मुझे तेरी रहमत की जरुरत है
मैंने आशीष भी तेरे से मांगी
साथ पलके भी रह गयी भीगी
तू मेरा मददगार भी रहा है
मेरी नैया का संचार कर रहा है
में भुला, भटका क्या करू?
तेरे स्मरण के सिवा और क्या क्या करू
लोगो को पहचानना मुझे आता नहीं
हर वक्त में धोका खाना गंवारा भी नहीं
मेरी किश्ती चलाने में मदद कर ओ खुदा
तेरे पाँव की धुल है ये नाचीज़ बंदा
ना मांगू तुज से धन और दौलत
और नहीं चाहिए मुझे ज्यादा शोहरत
साथ दे सके तो दे देना मालिक
में तो हु तेरा अदना सेवक
रखना न मुझे कभी तेरे से वंचित
डगमगा जाऊ ओर हो जाऊ विचलित
मेरी नहीं इतनी हेसियात की कर पाऊ
बस इतना कर की सर पाव में झुकाउ
मुझे कुछ न मिले तो गम नहीं
पर तेरा हाथ सर से हटे नहीं
दो वक्त खाना मिल जाए तो सही
और न भी मिले तो गम कोई नहीं
बस रखना पास अपने करीब
गुजारिश करता है ये बंदा गरीब
में तो चला जाउंगा तुझे युही छोड़कर
पर लाज तु ही रखना मेरी ये सोचकर
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Bahut hee sunder. Kash ki wh mujhe kabhi mil jaye.