एक सायर ने दुसरे साएर से कहा
हम सब हो जायेगे एक दिन तबाह
यह महफ़िल जिसे जी रहे है हम सब
पर आखिर में क्या होगा किसे है पता
अब जब खोल दी है ये सब नब्ज
तो क्यों टटोल रहे है इसे हम सब
जातिवाद छिपा है अज्ज कल की नसल में
सब कोई है एक दुसरे की सरन में
कोई कहता में हु हिन्दू
कोई कहता में हु मुस्लमान
पर कोई ये नहीं कहता हम सब है इन्सान
परमात्मा ने ये धरती बनायीं
उस पर ये इन्शानो की दुनिया बसाई
पर हो गया है अज्ज मतलबी इन्शान
भूल गया है वह अपना इमां जातिवाद हो गयी है अज्ज की राजनीती
हर रोज होती है एक न एक आप बीती
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