Rishto Ki Dor Poem by AVINASH PANDEY KHUSH

Rishto Ki Dor

Rating: 5.0

रिश्तो की डोर
इक दुनिया थी जब रिश्ता था, अब तो रिश्ता का पता नही
किस ओर चली और कहा गई, अब तो दुनिया बस किस्सा है ।
तब गैर भी अपने होते थे, जब पीड़ा हमको होती थी
अब तो अपनो के दर्द मे भी, अपनो से घृणा होती है
अब खाली समय नही हमको, रिश्ते को रिश्वत बना दिया
अब प्यार नही एक दूजे मे बस जीवनसाथी चुना गया
जब प्यार ना हो इक दूजे मे, अब पैसा प्यार बढाता है
मिट्टी तो रोटी देती है, क्या पैसा भुख मिटायेगा
पैसे से प्यार नही मिलता, वो एक दिखावा होता है
जिस दिन पैसे से हुए गरीब, बस उसी समय वो बिकता है
इक दुनिया थी जब रिश्ता था, अब तो रिश्तो का पता नही
किस ओर चली और कहा गई, अब तो दुनिया बस किस्सा है ।
इक समय हमारा वो भी था, जब जेब हमारे खाली थे
पर सीता - राम की जोडी से घर मे खुशियो की लाली थी
जीवनसाथी जीवन से नही, बस साथी से ही प्यार करे
सावित्री और सत्यवान जैसा हम सब व्यवहार करे
अब श्रवण कुमार सा पुत्र नही सब औरंगजेब ही दिखते है
ना माता अब कौशल्या है, ना ही नारी अब सीते है
ना ही राम सा चरित्रवान, ना ही कोई भागवत् गीता है
अब भारत हमे बनाना है, भारत का भाग्य जगाना है
मानवता का लक्ष्य यही आपस मे प्रेम बढाना है
प्यारे भारतवर्ष को फिर से स्वर्ग बनायेंगे
इक दुनिया थी जब रिश्ता था, अब तो दुनिया का पता नही
किस ओर चली और कहा गई, अब तो दुनिया बस किस्सा है । .

Rishto Ki Dor
Tuesday, January 6, 2015
Topic(s) of this poem: love and pain
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AVINASH PANDEY KHUSH

AVINASH PANDEY KHUSH

20/10/1995 JAUNPUR U. P. BHARAT
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