ग़ज़ल-
दफ़अतन उस वक़्त तेरी बंदगी हो जायेगी।
जिस घड़ी घर में हमारे तीरगी हो जायेगी।
मत बुझाना घर की चौखट पे रखा बूढ़ा चराग़-
याद आयेगा बहुत जब तीरगी हो जायेगी।
एक साअत की तरह आये तो वो मेरे क़रीब-
मुझसे मिलते ही मुकम्मल इक सदी हो जायेगी।
जब पुकारेगा किसी की ज़ुल्फ़ का साया मुझे-
बस तभी से इब्तदा ए शायरी हो जायेगी।
तुम मेरी फितरत को समझो नाम है मेरा हिलाल-
जिस जगह पर पाँव रख दूँ रोशनी हो जायेगी।
- - - - - - - हिलाल चन्दौसवी
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