महाप्रलय भाग-2 भूकंप
मैं उसकी गाथा क्या गाऊ?
जो झूम रहे थे स्वरगों में।
मैं उसकी व्यथा कैसे सुनाऊ?
जो घूम रहे थे भूगर्वों में।
मैं उसके खातिर कैसे रोऊ?
जो पी रहे है सीने में।
मैं उसका शव कैसे उठाऊ?
जो साथ दिया था जीने में।
मैं उसे छोड़ कहाँ जाऊ?
जो रो रहे हैं कोने में।
मैं उसे छोड़ कैसे भागू?
जो कभी साथ दिया है सोने में।
मैं उसके बारे क्या लिखू?
जो बेसुध पड़ा है मिट्टी में।
मैं उसके बारे क्या बोलू?
जो स्तब्ध खड़ा है भित्ती में।
मैं उसका स्मरण अब क्यों करू?
जो एकटक खडा है मंदिरो में।
मैं उसका स्मरण क्यों करू?
जो अर्थी(स्वार्थी) पड़ा है मस्जिदों में।
मैं दिन रात अब कैसे पुकारू?
जो विस्वास नहीं अल्लाह और भगवानो में।
मैं अपने आप को क्या बचाऊ?
जो तोष(सन्तुष्टि) नहीँ प्रकृति और हैवानों में।
मैं इंसानो की पीड़ा कैसे बताऊ?
जो घिर चूका तूफानों में।
मैं भू की दुःख को क्या बताऊ?
जो बदल चूका शमशानों में।
मैं इंसानों को कैसे समझाऊ?
जो बस एक मजहब है इस दुनिया में।
मैं ठेकेदारों को क्या बतलाऊ?
जो इंसानियत ही धर्म है इस दुनिया में।
लालजी ठाकुर(दरभंगा बिहार)
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