आशाओं की उम्मीदों की
किरण एक तुम नई जगाते
दिन-प्रतिदिन ले सपने आते
तुम नही मसीहा से कम भाई
केबीसी के मंच से तुमने
सदा नई एक राह दिखाई
लगता है कुछ ऐसा हमको
तुम नही मसीहा से कम भाई
टूट गये है सपने जिनके
छूट गये हैं अपने जिनके
तुमने उनको आस दिलाई
तुम नही मसीहा से कम भाई
सारे दुख जग के हर लोगे
खुशियों से दामन भर दोगे
नामुमकिन को मुमकिन करते
तुम नही मसीहा से कम भाई
अभय शर्मा 5 अक्टूबर 2011 (प्रकाशित 6 अक्टूबर 2011)
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