हमारे शहर में,
कुत्ते गाडियों में घूम रहे थे, भिखारी भगवान् की दुहाई दे रहा था,
गरीब गिडगिडा रहा था अपनी दिहाड़ी के लिए,
टीवी पर नेता जी देश बदल रहे थे,
दूकानदार झगड़ रहा था ग्राहक से छुट्टे पैसो के लिए,
सिपाही रिश्वत के लिए सड़क पर चल रही गाड़िया रोक रहा था,
ठेकेदार सड़क के गड्ढों को भरने के लिए आदेश लेने के लिए मंत्री जी की कीमत लगा रहा था,
आम आदमी इंतजार कर रहा था रविवार का,
डॉक्टर अपनी फीस बढाने का फैसला कर रहा था,
नौजवान लोग बर्गर खा रहे थे कोक के साथ,
बुजुर्ग लोग खांस रहे थे,
एक बच्ची अपने घर के आस पास,
अपनी जान पहचान के एक अंकल के हाथो रौंदी जा रही थी,
उसे बचाने के लिए किसी के पास वक़्त नहीं था,
सब व्यस्त थे,
हमारे शहर मे……….
Sahi Kaha aapne Hum sab vayasth thae, kisi ke paas vakth nahin thaa.. Beautiful poem with great message..Loved reading it.. I invite you to read my poem too..
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Thanks Geetha, Bilkul aapki kavitae padhenge ham.