जगाकर आत्मा अपने को
देखो मन के दर्पण में
कभी असहाय दुख पीड़ित
गरीबों का ख्याल आया |
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तुम्हारी चाह में भटका पर न पाया कुछ भी,
रोते बच्चे को हसाया तो कुछ सुकून मिला|
मंदिरों मस्जिदों में प्राथना की सिजदा किया पर न पाया कुछ,
पास कि झोपड़ी में दीप जलाया तो कुछ सुकून मिला|
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आँधी तूने
महफूज़ रखे सबके घर
क्या खता थी मेरी
घर उजाड़ने आयी |
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जिन्दगी अपनी सवारी तो क्या किया तुमने.
कुछ करो औरो के लिये तो कोई बात बने |
भूल जाओ अतीत की कड़वी यादें.
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तुम्हारा प्यार क्या मिला
बदल गया जीवन
मेरी सम्वेदनाये सब
सहज मुस्कान बन गयी |
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सबसे कहता हूँ कमियां इंगित करो मेरी,
कोई टोके तो क्यो उलझता हूँ |
लोगो के बीच घूमता सफेद्पोश बनकर,
कोई औकात दिखाए तो क्यो उबलता हूँ |
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जन्म-जन्म की पूर्ण प्रतीक्षा
शांत विरह की व्याकुलता
कुछ तो ऐसी बात हो रही
लगता अबकी बार मिलोगे |
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अपने गुनाहों को छुपाया
दुनियां से हमने
धिक्कार अन्तर से उठी
तब कहीं होश आया |
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जहां से तय है गिर के मरुँगा लेकिन
उन्ही दुर्गम पहाड़ों से मै फिसलता हूँ |
रिश्ते नातों की हक़ीक़त जानता मगर
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