जगाकर आत्मा अपने को
देखो मन के दर्पण में
कभी असहाय दुख पीड़ित
गरीबों का ख्याल आया |
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तुम्हारी चाह में भटका पर न पाया कुछ भी,
रोते बच्चे को हसाया तो कुछ सुकून मिला|
मंदिरों मस्जिदों में प्राथना की सिजदा किया पर न पाया कुछ,
पास कि झोपड़ी में दीप जलाया तो कुछ सुकून मिला|
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जिन्दगी अपनी सवारी तो क्या किया तुमने.
कुछ करो औरो के लिये तो कोई बात बने |
भूल जाओ अतीत की कड़वी यादें.
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तुम्हारा प्यार क्या मिला
बदल गया जीवन
मेरी सम्वेदनाये सब
सहज मुस्कान बन गयी |
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सबसे कहता हूँ कमियां इंगित करो मेरी,
कोई टोके तो क्यो उलझता हूँ |
लोगो के बीच घूमता सफेद्पोश बनकर,
कोई औकात दिखाए तो क्यो उबलता हूँ |
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जन्म-जन्म की पूर्ण प्रतीक्षा
शांत विरह की व्याकुलता
कुछ तो ऐसी बात हो रही
लगता अबकी बार मिलोगे |
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अपने गुनाहों को छुपाया
दुनियां से हमने
धिक्कार अन्तर से उठी
तब कहीं होश आया |
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जहां से तय है गिर के मरुँगा लेकिन
उन्ही दुर्गम पहाड़ों से मै फिसलता हूँ |
रिश्ते नातों की हक़ीक़त जानता मगर
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मिला रूठ कर क्या मना कर तो देखो |
सहज हो प्रिये मुस्करा कर तो देखो ||
भयानक अंधेरों में कब तक जियोगे |
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तुम बनी क्यो रूप की अनुगामिनि हो |
नाम कोई अब न, केवल कामिनी हो ||
पा लिया आदर तथा अधिकार तुमने |
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नही भूलतीं पहली मुलाकात क्या करें |
आज फिर उठें मिलन के जज़्बात क्या करे ||
वह शाम सुहानी थी झरनों का शोर था |
पहाड़ों की मन भावन बरसात क्या करें ||
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कभी आते न आँसू रो चुका हूँ
कलुष मन में भरा जो धो चुका हूँ |
बड़ा उद्विग्न पर विचलित न पथ से
दुखों का बोझ सर पर ढो चुका हूँ |
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जब से सुना है तुम आ रहे हो
मेरे स्वप्न फिर से सवरने लगे है |
तुम्हारी प्रतीक्षा में सदियाँ बितायी
सहा दु: ख रातो की निदिया गवायी |
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गये तुम इस जहां से क्या.
सभी खुशियों ने संग छोड़ा
पराये तो पराये थे
सभी अपनों ने मुख मोड़ा |
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सबसे कहता हूँ कमियां इंगित करो मेरी,
कोई टोके तो क्यो उलझता हूँ |
लोगो के बीच घूमता सफेद्पोश बनकर,
कोई औकात दिखाए तो क्यो उबलता हूँ |
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जगाकर आत्मा अपने
जगाकर आत्मा अपने को
देखो मन के दर्पण में
कभी असहाय दुख पीड़ित
गरीबों का ख्याल आया |
बहुत उम्मीद थी तुमसे
नया आलोक बिखरेगा
तुम आए ढला सूरज
अंधेरा और घिर आया |
वट वृक्ष जिसकी छांव में
भय मुक्त रहना था
काँटों की चुभन पीड़ा
लहू तन से निकल आया |
कहां थी कल्पना हम
चंद्रमा पर घर बनायेगे
मिलीं न छत पड़ी अब
जिंदगी पर साँझ की छाया |
जिन्हें आश्वासनो के ढेर में
अब तक दबा रखा
सुलग कर देखो अब उनका
फटने का समय आया |
मिथक थी पास आ तेरे
कोई खाली नही जाता
वक्त का यह सितम कौशल
जो था वह् भी गवां आया |
..............कौशल अस्थाना