जि‍द्दी परिंदा Poem by Shiv Chandra

जि‍द्दी परिंदा

Rating: 5.0

मेरे दिल के किसी कोने में कहीं जो एक जिद्दी परिंदा है

उम्मीदों से है घायल, और अपनी ही उम्मीद से जिंदा है
 

रिश्तों की जमापूंजी की, मधुर मिठास को फिर संभालता

अपनी वर्जनाओं में जीता, दिल की बस्ती का बाशिंदा  है

कहानियां किस्मत ने खूब रची थी, कल तेरे मेरे रिश्तों की

मै बावरी-सी क्यूं, सुध-बुध खोती, नाव चलाती थी रिश्तों की




 

जमीं पे आकर सच को देखा, तो बारात लगी थी रिश्तों की

बंटवारे की किश्तों से चुकता कर, मैने नींव रखी थी रिश्तों की

मेरी इस मि‍ल्कियत को सहेजे, दिल का ये जो जिद्दी परिंदा है

फिर उम्मीदों से है घायल, और अपनी ही उम्मीद से जिंदा है

सात जन्मों की गहराई थी कहीं, कांच की चूड़ी के गठबंधन में

प्यार इकरार और मनुहार भी था, कहीं कच्चे सूत के बंधन में

ममत्व और विश्वास पाया, मां के शबनमीं अहसास से दामन में 

फिर पंखुड़ी-पंखुड़ी सहेजा एक संसार, अनमोल प्यार भरे रिश्ते में
 

आशीषों की कमाई को सहेजता, दिल का ये जो जिद्दी परिंदा है

फिर उम्मीदों से है घायल, और अपनी ही उम्मीद से जिंदा है

मेरा बंधन, मेरी मुक्ति, मेरे दिल का दर्पण, दिखता है रिश्तों में

मेरा आलिंगन, मेरा अर्पण, और बिन शर्तों का समर्पण बंधन में

एक हुलस है, प्रेम रसनिधि‍ है, और वाणी का तर्पण इन नातों में

मेरी पूंजी है, मेरी धरोहर, मेरा मान-सम्मान, आकर्षण संबंधों में
 

रिश्तों की जमापूंजी पर प्राण लुटाता दिल का ये जो जिद्दी परिंदा है

फिर उम्मीदों से है घायल, और अपनी ही उम्मीद से जिंदा है

जि‍द्दी परिंदा
Wednesday, September 23, 2015
Topic(s) of this poem: motivation
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 23 September 2015

कवि हृदय में उठने वाले मनोभावों को, उसकी आशा, निराशा, अपनी सहज प्राप्तियों व विसंगतियों को इस कविता में बहुत खूबसूरती से उकेरा गया है. रचना बहुत रोचक है जिसमे जीवन का स्पंदन है. धन्यवाद, शिव चन्द्र जी. एक बानगी: उम्मीदों से है घायल, और अपनी ही उम्मीद से जिंदा है.../ अपनी वर्जनाओं में जीता, दिल की बस्ती का बाशिंदा है

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Anita Sharma 23 September 2015

good emotive write.liked

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M Asim Nehal 23 September 2015

बहुत बढ़िया , बहुत बढ़िया ! ! ! ! ! ! ! ! !

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