बेईमानों का राज है भैया Poem by Shiv Chandra

बेईमानों का राज है भैया

Rating: 4.0

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

नई नई योजनाये बनती करने नए घोटाले
गरीबो का नाम दिखाकर अपनी झोली में ये डाले
सड़को को कागजो में बनाकर मरम्मत का भी पैसा निकाले
पेंशन के बटवारे में भी करते है गडबडझाले

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

गाँव का सबसे अमीर है होता बीपीएल कार्डधारी
योजनाओ का लाभ लेने में आती उसकी पहली बारी
गरीब तो बीपीएल में नाम जुडवाने अपनी पूरी उम्र है गुजारी
इनकी जिंदगी नहीं बदलती चाहे हो कोई भी पार्टी सत्ताधारी

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

अपराधिक मामले है जिनपर लड़ते वही चुनाव
जीतने के बाद जनता से ये कहते हमारे सामने सिर झुकाव
अफसर भी नहीं बढ़ाते फाइल लिए बिन पैसे
पिसती है बस आम जनता ऐसे या वैसे

बेईमानों का राज है भैया, बेईमानों का राज
समझ लो तुम ये आज, समझ लो तुम ये आज

बेईमानों का राज है भैया
Saturday, October 3, 2015
Topic(s) of this poem: corruption
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 04 October 2015

देश की राजनैतिक एवम् सामाजिक व्यवस्था पर अच्छा व्यंग्य है जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देता है. कविता से ही कुछ विचारणीय उद्धरण: गरीबो का नाम दिखाकर अपनी झोली में ये डाले / गाँव का सबसे अमीर है होता बीपीएल कार्डधारी / अपराधिक मामले है जिनपर लड़ते वही चुनाव / पिसती है बस आम जनता ऐसे या वैसे

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Kumarmani Mahakul 03 October 2015

Wonderful and very thought provoking poem shared.....

1 0 Reply
Vishal Sharma 03 October 2015

Nice poetry man Go on keep penning

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