अंधेरे को धरा से,
मार भगाएं।
रहे जिनकी जिंदगी में,
सदा है अंधेरे।
उजाले न आए,
कभी न देखे सबेरे।
उन्हें आके फिर से,
सजाए-संवारें।
चलो एक दीया
फिर से जलाएं।
अंधेरे को धरा से
मार भगाएं।
निशा बन गई,
जिनकी जिंदगी की।
कहानी,
हमेशा है देखी।
दुख और परेशानी,
उनके दर्द और घावों,
पर मरहम लगाएं।
चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।
तिमिर है घना,
रात्रि न कटने वाली।
पता कब फिर से,
आएगी जीवन में दिवाली।
चलो उनके जीवन में,
सूरज बनके आएं।
उनके अंधकारपूर्ण जीवन में,
चांदनी बिखराएं।
चलो एक दीया,
फिर से जलाएं।
अंधेरे को धरा से,
मार भगाएं।
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कविता में उन लोगों के प्रति कवि की प्रतिबद्धता देखने को मिलती है जो वंचित हैं, समाज के हाशिये पर खड़े हुए हैं. यदि ऐसे तबको के जीवन में प्रकाश आ सके तभी दिवाली जैसे पर्वों को मनाना सार्थक होगा. बहुत सुंदर.