दर्द से ही मुक्कमल मेरा शेर होगा Poem by Lalit Kaira

दर्द से ही मुक्कमल मेरा शेर होगा

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मेरी कविता मेरी ग़जल से निकल के
आगोश में आजा हवा सी मचल के

जो गुजरा है तेरी बांहों में एक पल
वो इक पल साथ देगा दिन अजल के

दर्द से ही मुक्कमल मेरा शेर होगा
अरमान आखों से निकालेंगे पिघल के

मैं तन्हा उदास रुसवा हूँ तू आजा
मेरी कविता मेरी गज़ल से निकल के

Monday, November 2, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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