रानीखेत Poem by Lalit Kaira

रानीखेत

Rating: 5.0

हरे मखमली रास्तों पर गुजरे
वो बेपरवाह लम्हें-
गाते, गुनगुनाते
भीगे-महकते
और तुम्हारा साथ।
ये पेड़ ये पहाड़
महकती बयार
हँसी -ठट्ठा-पढाई-प्यार

पता है रानीखेत क्या है
मेरे लिए मेरे किसी पुराने सिल्क के कुर्ते
की सलवट में दबी
किसी चूंड़ी के टुकड़े की तरह है-
रानीखेत।

Monday, November 2, 2015
Topic(s) of this poem: places
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 02 November 2015

प्रकृति की दृश्यावली में अनुपम कल्पनाशीलता का सुखद प्रयोग. इसमें शीतल बयार की ताज़गी है. धन्यवाद, मित्र.

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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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