दिल दुखाया न करो Poem by Upendra Singh 'suman'

दिल दुखाया न करो

तन्हाइयों में मेरी तुम आया न करो.
अर्ज तुमसे है दिल ये दुखाया न करो.

खंजरे अक्स तेरा सीने में उतर जाता है.
ये जुल्मो-सितम मुझ पे यूँ ढाया न करो.

मेरे आंसुओं का दरिया मुझको निगल रहा है.
डूबे हुए को यूँ तो डुबाया न करो.

ये रूप ये यौवन ये गेसुओं की घटायें.
मदिराये-हुस्न मुझको पिलाया न करो.

मैं दर्द का मंजर हूँ झेला है हर सितम.
ऐसे में 'सुमन'मुझको सताया न करो.

जिस्त मेरी ही 'सुमन'मुझसे करती है शिकायत.
कहती है मुझको यूँ तो रुलाया न करो.

उपेन्द्र सिंह 'सुमन'

Friday, November 20, 2015
Topic(s) of this poem: heart
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 20 November 2015

बहुत सुंदर, वाह... वाह! कविता में अभिव्यक्ति का यह अंदाज़ बहुत भाया. धन्यवाद, उपेन्द्र जी. एक सुझाव: निम्न पंक्तियों में मदिरा-ए-हुस्न के स्थान पर शराब-ए-हुस्न लिखना ज्यादा उचित होगा (मदिरा हिंदी का शब्द है) . ये रूप ये यौवन ये गेसुओं कि घटायें. मदिराये-हुस्न मुझको पिलाया न करो.

0 1 Reply
Upendra Singh Suman 03 December 2015

शुक्रिया

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