माँ Poem by Tarun Upadhyay

माँ

माँ तुम महक हो
उस फूल की
जिसे रिश्ता कहते हैं
माँ तुम फूल हो
उस पौधे की
जिसे परिवार कहते हैं
तुम छाया हो उस
वट वृक्ष की
जिसके नीचे परिवार
पलता है
तुम डोर हो त्याग की
जो परिवार को
बाँध कर रखती है
माँ तुम प्रतीक हो
कर्तव्य और निष्ठा की
जो मुझे जीना सिखाती है
माँ तुम
तुम रोशनी हो उस
दीपक की
जिसकी रोशनी मुझे
जीवन पथ से
भटकने नहीं देती
माँ तुम प्रतिमूर्ती हो
सहनशीलता की
जो खुद सहती है पर
मुझे सहने नहीं देती
माँ तुम
पराकाष्ठा हो स्नेह की
तुम्हारे ध्यान भर से ही
सुखद अनुभूती होती है
माँ तुम माँ हो
कोई बराबरी नहीं
हो सकती तुम्हारी
- - - - - - - - -
- अज्ञात

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