बढे कदम रुकते नहीं Poem by Tarun Upadhyay

बढे कदम रुकते नहीं

बढे कदम रुकते नहीं

बढे कदम रुकते नहीं
रुके कदम बड़ते नहीं
पानी हो मंजिल तो
पीछे मुड देखते नहीं
माना है मुस्किले रास्तो में
सुनसान सड़क है और अँधेरी राते है
एक दिया तो जलाओ रस्ते खुद ब खुद जगमाएँगे
आगे बदने का होसला रखो मंजिल सामने आएंगी
मत सोचो इतिहास ने हमे क्या दिया
हम इतिहास बनाएँगे
................
- - अज्ञात

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