माँ Poem by Upendra Singh 'suman'

माँ

माँ तेरे बिन कौन मधुमय, स्नेह का मझधार देता.
नेह निर्झर विमल निर्मल, कौन मुझ पर वार देता.

माँ तेरे बिन कौन अज, को सृष्टि का उपहार देता.
ब्रम्ह की परिकल्पना को, कौन शुभ आकार देता.

माँ तेरे बिन कौन मधुमय...............................


तेरा अमिय पयपान कर, ब्रह्मांड का विज्ञान चेता.
लोरियों की सुन ऋचायें, अज्ञान मन बनता प्रणेता.
माँ तेरे बिन कौन मधुमय...............................


माँ तेरा पावन परस, वरदान का है सार देता.
आशीष अंतर का तेरे, पतितों को है उद्धार देता.
माँ तेरे बिन कौन मधुमय...............................


तेरी भुजाओं का तपोवन, भगवान को भी तार देता.
सौभाग्य जगाता ब्रम्ह का, कान्हा है तब अवतार लेता.
माँ तेरे बिन कौन मधुमय................................

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Friday, December 4, 2015
Topic(s) of this poem: mother,motherhood,respect
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
आदरणीया माँ को समर्पित रचना
COMMENTS OF THE POEM
Deepak Kaushik 18 December 2015

MAA is god on the earth...home is not home without mom...nice poem sir g...

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