फाग जीवन में लाया नया रंग रे Poem by Upendra Singh 'suman'

फाग जीवन में लाया नया रंग रे

फाग जीवन में लाया नया रंग रे,
नाचे ता-ता थई मोरा अंग-अंग रे.


मटकी कलाई थिरक उठे पांव रे,
छम-छम छमक उठे घुँघरू ठाँव-ठांव रे.
साकी शराब हुई मोरी दो अंखियां,
नयनों से जाम पिए बलमा विदेशिया.
पोर-पोर छाई सखी मादक उमंग रे,
फाग जीवन में लाया नया..............

बांका छबीला ने मुझको है घेरा,
रसिक संवरिया ने डाला है डेरा.
शोख अदा साजन की मोहें गुद्गुदाये रे,
प्यार के रंग से मेरा मन भींग-भींग जाये रे.
सररर उठ रही जिया में उमंग रे,
फाग जीवन में लाया नया..............

द्वारे हुड़दंग मची आये जी मुझको हँसी,
उड़त गुलाल लाल धम-धम-धम धूम मची.
गली-गली झूम रही ऐसी चढ़ी भंग रे,
मोरा मन मयूर नाचे बालम जी संग रे.
सखी नाहिं वश में मोरा गात नवरंग रे,
फाग जीवन में लाया नया..............

गोरे-गोरे गालों पर रंगीली फबी रे,
` टोली हुड़दंगों की खूब सजी-धजी रे.
धम-धम धमाल मचा प्यार संग ठिठोली का,
सिर पर सवार है ख़ुमार सखी होली का.
ढोलक ढमक उठी ढम-ढम मृदंग रे,
फाग जीवन में लाया नया..............

पुरुवा बयार टेरे फागुन के छंद रे,
छेड़े कोयलिया काली तान मधुर मंद रे.
ठुमक रहा फाग सखी चहके बसंत रे,
किलक रहा गगन मगन झूमे दिग-दिगंत रे.
कण-कण बिखेर रहा मादक मकरंद रे,
फाग जीवन में लाया नया..............

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Friday, December 4, 2015
Topic(s) of this poem: festival
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