ख़्वाइश की होगी हमने Poem by Priya Guru

ख़्वाइश की होगी हमने

सद रतो बाद जब मेरे, नूर की ख़्वाइश की होगी तुमने
खुद जहां बख्से जुस्तजू उसकी तेरे, वजूद की ख़्वाइश की होगी हमने
टूटे सितारे भी मुददतों बाद शरमाये उस दिन
शायद चंदा से चांदनी को, बगावत की ख़्वाइश की होगी हमने |

Sunday, October 16, 2016
Topic(s) of this poem: longing
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