जब छलका आंसू आंखो से, उलझी सी बहकी सी याद बनके तेरी
समझकर मोती अपना लिया वो भी, लिया लहूं में उतार जानकर तेरा उसको
इरादा तोह किया था मरने का, विरह के इस दर्द में हमने
समय से मुकर आये यूं ही, जी लिया हर बार मानकर तेरा खुदको
कहते है लोग इस तरह जीने में तुझे, क्या बहोत ग़म नहीं है
मैं कहता हूँ ज़रा पूछो तोह उनसे, क्या मोहबब्त तोह कहीं कम नहीं है
रूह से मिला जब मैं तेरी, खुदा मिला है खोकर इस हस्ती को अपने
बस इंतज़ार दीदार का रहता है दिल को, मुकम्मल तबसे हूँ ज़रा भर कुछ कम नहीं है
अगर मिल ना सका इस जन्म मैं तुझको, रखना तू मेरे लफ्ज़ सब साथ ये अपने
इश्क़ में तेरे यूं जीने का शौक, बस इसी जन्म में नहीं है
अब दुआ ये है रब से मेरी, फिर मिल जाए तू वहीं अब मुझको
सोच ना कर इस दिल में अब, ज़रा भर भी कुछ कम नहीं है
जाना देख ज़रा कितना आसान है जीना तेरे इश्क़ में, यहां कुछ भी तोह मुश्किल नहीं है
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सुंदर काव्यात्मक अभिव्यक्ति.