नये फैशन का दौर Poem by Upendra Singh 'suman'

नये फैशन का दौर

आधुनिका पत्नी का अज़ब-गज़ब रूप देख
बेचारा पति चकराया,
अचकचाया, घबराया
और जब उसे कुछ भी समझ में न आया.
तो पत्नी की ओर देखकर चिल्लाया -
अरी भागवान, तुम्हारे माथे पर
ये अफ्रीका का जंगल कहाँ से उग आया.
मुझे तो इन हरी, पीली, सफेद, भूरी झाड़ियों में
कई हिंसक पशु नज़र आ रहे हैं.
हटो, हटो, दूर हटो भागवान
ये तो मुझे खाने को मुँह बा रहे हैं.
पतिदेव का हाल देख पत्नी मुस्कराई,
दो कदम चल उनके और करीब आई
और झाड-झंखाड़ रूपी ज़ुल्फों की ओर
इशारा करते हुये बोली -
मेरे जानेमन, मेरे हमजोली
तुम्हारी समझ है बड़ी भोली.
अरे ये अफ्रीका का जंगल नहीं कुछ और है.
तुम तो कुछ समझते ही नहीं,
अरे, ये नये फैशन का दौर है.

Tuesday, January 19, 2016
Topic(s) of this poem: style
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 19 January 2016

Really a hilarious poem.....loved it....thanx for sharing :)

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