आएगी जान में जान
माल सामने ही पड़ा था
कोई उसे छोड़कर चला गया था
मन मेरा मचला उसे उठाने के लिए
पर मना न सका इस काम के लिए।
किसी के शादी का जोड़ा था
साथ में सोने का अछोड़ा था
बहुत सारी नकदी थी
और साथ में एक चिठी भी थी
'बहन तेरे लिये भेज रहा हूँ'
और कुछ ज्यादा करने के लिये पसीना बहा रहा हूँ
तेरे को बाद मे कुछ सुनना ना पडे
ससुराल में तेरे मान-सम्मान और बढे
इस चिठी को पढ़कर मुझे एहसास हुआ
दिल में ठेस लगी और महसूस हुआ
कैसे मन को मनाता होगा 'सब सामान को खोकर'
मन मेरा ग्लानि से भर गया यह सब सोच कर
कोई और इसे ले जाता
हो सकता है इसी पैसो से शराब पिता
या मौज मजे में उड़ा देता
एक बहन का सपना भाई कैसे पुरा कर के पाता
में हेरान था और परेशान
लगता नहीं था काम इतना आसान
बड़ी मुश्किल से ढूंढ पाया घर का टेलीफोन
अब मुझे लगा भाई को आएगी जान में जान
में हेरान था और परेशान
लगता नहीं था काम इतना आसान
बड़ी मुश्किल से ढूंढ पाया घर का टेलीफोन
अब मुझे मजा भाई को आएगी जान में जान
हेलो कौन बोल रहा है?
सामने से आवाज आई' एक दुखी भाई बोल रहा है
अपना सब कुछ गंवा के "आंसू बहां रहा है"
सुबह से हूँ गमगीन और मन को कोस रहा हूँ
मैंने धीरे से कहा' अब गमगीन ना हो'
आप की इज्जत सलामत त्रहो
आप का सामान मेरी हिफाजत में है
एक बहन के मेरे पास अमानत है
Niranjan Singh likes this. Comments welcome Unlike · Reply · 1 · Just now
Gagan Dwivedi likes this. Comments welcome Unlike · Reply · 1 · Just now
Chhaya Sharma likes this. Comments welcome Unlike · Reply · 1 · Just now
welcome balwindersingh Unlike · Reply · 1 · Just now
welcome bhai ssatnam singh Unlike · Reply · 1 · Just now
welcome paramjit singh grewal Unlike · Reply · 1 · Just now
Rajani Champaneri likes this. Comments welcome Unlike · Reply · 1 · Just now
welcome Jitu V. Kural likes this Unlike · Reply · 1 · Just now
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
आएगी जान में जान माल सामने ही पड़ा था कोई उसे छोड़कर चला गया था मन मेरा मचला उसे उठाने के लिए पर मना न सका इस काम के लिए। किसी के शादी का जोड़ा था साथ में सोने का अछोड़ा था बहुत सारी नकदी थी और साथ में एक चिठी भी थी बहन तेरे लिये भेज रहा हूँ और कुछ ज्यादा करने के लिये पसीना बहा रहा हूँ तेरे को बाद मे कुछ सुनना ना पडे ससुराल में तेरे मान-सम्मान और बढे इस चिठी को पढ़कर मुझे एहसास हुआ दिल में ठेस लगी और महसूस हुआ कैसे मन को मनाता होगा सब सामान को खोकर मन मेरा ग्लानि से भर गया यह सब सोच कर कोई और इसे ले जाता हो सकता है इसी पैसो से शराब पिता या मौज मजे में उड़ा देता एक बहन का सपना भाई कैसे पुरा कर के पाता में हेरान था और परेशान सामने से आवाज आई एक दुखी भाई बोल रहा है अपना सब कुछ गंवा के “आंसू बहां रहा है” सुबह से हूँ गमगीन और मन को कोस रहा हूँ मैंने धीरे से कहा अब गमगीन ना हो आप की इज्जत सलामत त्रहो आप का सामान मेरी हिफाजत में है एक बहन के मेरे पास अमानत है