यहाँ सब कुछ बिक रहा है Poem by Tarun Upadhyay

यहाँ सब कुछ बिक रहा है

घोडा रेस में बिक रहा है,
वकील केस में बिक रहा है,
अदालत में जज बिक रहा है,
वर्दी में फर्ज बिक रहा है!
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
मज़बूरी में इंसान बिक रहा है,
जुल्म का हैवान बिक रहा है,
पैसों कि खातिर ईमान बिक रहा है,
गरीबों का प्राण बिक रहा है!
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
फिल्मों में गाना बिक रहा है,
गरीब बच्चों का दाना बिक रहा है,
स्कूल का मास्टर बिक रहा है,
अस्पताल का डाक्टर बिक रहा है!
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
सड़कों पर मन बिक रहा है,
ब्यूटी पार्लरों में तन बिक रहा है,
गरीबों का गुर्दा बिक रहा है,
शर्म-हया का पर्दा बिक रहा है!
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
सर्कस का जोकर बिक रहा है,
बैंक का लाकर बिक रहा है,
अखबार का हाकर बिक रहा है,
कोठी का नोकर बिक रहा है!
यहाँ सब कुछ बिक रहा है.......
गेट का संत्री बिक रहा है,
पार्टी का मंत्री बिक रहा है,
खिलाडी खेल में बिक रहा है,
कानून जेल में बिक रहा है!
यहाँ सब कुछ बिक रहा है......
दोस्ती में दोस्त बिक रहा है,
बच्चों का गोश्त बिक रहा है,
पत्थर मिला दाल बिक रहा है,
हर मोड़ पर दलाल बिक रहा है,
यहाँ सब कुछ बिक रहा है ।।

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क्या आज ऐसी ही हालत हो चुकी है हमारे भारत की.. आपकी क्या राय है? ? ? ?
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