दोस्त Poem by Rahul Awasthi

दोस्त

जिस तरह अंधेरो में कोई जुगनू आस बंधता है
उस तरह दोस्तों से ये जिंदगी रंगीन हुई
दुश्मनी जब भी दोस्ती में तब्दील हुई
कितनी काली क्यों न हो घटा रंगीन हुई
कोई कितना भी मजहबी जहर खोल क्यों न ले
दोस्ती जब भी हुई सारी फिज़ाएँ शहद में तब्दील हुई
कई अपनों को भी बदलते देखा मैने
मगर किसी दोस्त से ऐसी न कभी भूल हुई

Sunday, August 7, 2016
Topic(s) of this poem: friend,friendship
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दोस्ती के नाम एक ग़ज़ल
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