जिस तरह अंधेरो में कोई जुगनू आस बंधता है
उस तरह दोस्तों से ये जिंदगी रंगीन हुई
दुश्मनी जब भी दोस्ती में तब्दील हुई
कितनी काली क्यों न हो घटा रंगीन हुई
कोई कितना भी मजहबी जहर खोल क्यों न ले
दोस्ती जब भी हुई सारी फिज़ाएँ शहद में तब्दील हुई
कई अपनों को भी बदलते देखा मैने
मगर किसी दोस्त से ऐसी न कभी भूल हुई
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