गरीबी इस तरह हावी है यहाँ Poem by Rahul Awasthi

गरीबी इस तरह हावी है यहाँ

गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह कुहासा हावी हो फागुन के महीने में।।

हाथ हैं सहमे हुए, पैरों में बिवाई हैं
प्राण व्याकुल हैं मगर आँखों में गहराई है।।

गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह धूप हावी हो श्रावण के महीने में।।

तड़पते भूक से बच्चे ना रोटी है ना पानी है
बताओ किस तरह कह दूँ रुत मीठी है सुहानी है।।

गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह मेघ हावी हो आश्विन के महीने में।।

हुकूमत से मददगारि की अब उम्मीद भी है फज़ूल
ये कहती है, ये गरीब क्यों हैं ये इनकी है भूल।l

गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह कुहासा हावी हो फागुन के महीने में।।

Tuesday, September 6, 2016
Topic(s) of this poem: life,painful,poverty,truth
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
फागुन-december
श्रावण-may
आश्विन-जुलाई! !
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