गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह कुहासा हावी हो फागुन के महीने में।।
हाथ हैं सहमे हुए, पैरों में बिवाई हैं
प्राण व्याकुल हैं मगर आँखों में गहराई है।।
गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह धूप हावी हो श्रावण के महीने में।।
तड़पते भूक से बच्चे ना रोटी है ना पानी है
बताओ किस तरह कह दूँ रुत मीठी है सुहानी है।।
गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह मेघ हावी हो आश्विन के महीने में।।
हुकूमत से मददगारि की अब उम्मीद भी है फज़ूल
ये कहती है, ये गरीब क्यों हैं ये इनकी है भूल।l
गरीबी इस तरह हावी है यहाँ कच्चे घरोंदों में
जिस तरह कुहासा हावी हो फागुन के महीने में।।
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