एक नया सवेरा Poem by M. Asim Nehal

एक नया सवेरा

Rating: 5.0

सूरज भी ढल गया
चाँद भी निकल गया
तुम हो कहाँ प्रियतम
अब मौसम भी बदल गया

बहारें भी आ गयी हैं
घटा भी छा गयी हैं
कोयल ने राग छेड़ा
बुलबुल भी गा रही है

अब तो बता दो मुझको
कब तलक आओगे तुम
ऑंखें भी थक गयी है
अब इंतज़ार कर के

लो दिन निकल ने को है अब
उषा बन तू आओ
पहली किरण से अब तुम
ये अँधेरा मिटा के जाओ

Friday, December 2, 2016
Topic(s) of this poem: nature love
COMMENTS OF THE POEM
Sonali Ganguly 06 December 2016

as usual very beautiful poem sir. loved it.

2 0 Reply
Dipankar Sadhukhan 02 December 2016

बहुत ही खूबसूरत।10+++

2 0 Reply
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