जब दिल में हो बसंत, तो क्यों न खुशियाँ हों अनंत?
हो माहौल में रार की गर्मी, या हो पतझड़ की हठधर्मी।
बहे जो मन में प्रेम की गंगा, हो कैसे मधुमास का अंत?
जब दिल में हो बसंत, तो क्यों न खुशियाँ हों अनंत?
मृत्यु पर हो प्रतिक्षण विजय, जीवन के भी रहें न भय।
जीत-हार में सम्चित्त हों जैसे, ध्यान अवस्थित संत।
जब दिल में हो बसंत, तो क्यों न खुशियाँ हों अनंत?
जिंदादिली की बहे बयार, उमंगें ह्रदय में अपरम्पार।
अवचेतन की स्वर-बगिया में, हों सहस्र आशा जीवंत।
जब दिल में हो बसंत, तो क्यों न खुशियाँ हों अनंत?
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