वेदवाणी को आत्मसात कर, उपनिषदों का मर्म छुआ।
व्यास ऋषि के गहन मनन से, भगवद्गीता का जन्म हुआ।।
जीवन है एक कर्मक्षेत्र, एक पुण्यक्षेत्र, एक धर्मक्षेत्र।
घुलते हैं संदेह-अनिश्चय, खुल जाते हैं ज्ञाननेत्र।।
कर्तव्य में ही अधिकार निहित, फ़ल तो मात्र संयोग जनित।
हेय समझ आलस्य निराशा, निष्काम कर्म से मोक्ष फलित।।
श्रेष्ठ व्यक्ति करता जो आचरण, अन्यजन करते उसका अनुसरण।
तपकर आदर्शों की वह्नि में, जीवन बनता अनिन्द्य उदाहरण।।
दुष्कर्मों से जब हो न लाज, असत से भयाक्रांत समाज।
धर्मव्यवस्था पुनर्स्थापना हेतु, उठा प्राणशपथ, बन योगीराज।।
संस्कृति का वैभव, तत्त्व-प्राण, आत्मा का अद्भुत अमरगान।
गीतानुकरण से सहज परिलक्षित, सकल जगत का परित्राण।।
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