जब जी चाहा काम किया, जब चाहा आराम किया।
हमने तो यारों जीवन में हर पल सुख का जाम पिया।
जब जी चाहा काम किया।
हालातों से खूब लड़े, खुले गगन में फिरे-उड़े।
दुनिया ने तिनका समझा पर, तूफ़ानों में रहे खड़े।
गिरतों को सम्भाल लिया, अन्धेरों में बने दिया।
कतरा-कतरा जोड़ी दौलत, एक पल में सब दान किया।
हमने तो यारों जीवन में हर पल सुख का जाम पिया।
जब जी चाहा काम किया।
कष्टों में तपकर पले, काँटों पर हँसकर चले।
आग से निकले बनकर सोना, ग़र्दिश में फूले-फ़ले।
प्रण हमने जो भी किया, तन-मन अपना लगा दिया।
ग़र कुछ हाथ न आया फ़िर भी, कटुता से न भरा हिया।
हमने तो यारों जीवन में हर पल सुख का जाम पिया।
जब जी चाहा काम किया।
अब तो है बस यही तमन्ना, इस पथ पर चलते रहें।
ज़ुल्मों का प्रतिकार करें हम, अन्यायों को नहीं सहें।
मन को नित काबू में रखें, भावावेश में नहीं बहें।
राज़ जो पूछे कोई ख़ुशी का, तो हम इतना ही कहें।
जब जी चाहा काम किया, जब चाहा आराम किया।
हमने तो यारों जीवन में हर पल सुख का जाम पिया।
जब जी चाहा काम किया।
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