निंदिया की नदिया पर [लोरी] Poem by Jaideep Joshi

निंदिया की नदिया पर [लोरी]

निंदिया की नदिया पर, नाव चली रे।
सोया है नन्हा नटखट, मूरत यह भली रे।
निंदिया की नदिया पर।

परियों का है संग, चांदनी का साया।
अठखेलियाँ मोहक, मन सबके भाया।
अद्भुत छवि है ये, कैसी यह माया।
बरखा है सुख की, फूलों की गली रे।
निंदिया की नदिया पर, नाव चली रे।
सोया है नन्हा नटखट, मूरत यह भली रे।
निंदिया की नदिया पर।

बचपन की मस्ती है, पानी सी रवानी।
भोली अदाएं इसकी, सूरत सुहानी।
घुँघरू की खन-खन में, सपनों की कहानी।
बातें शहद में, मिसरी ज्यों घुली रे।
निंदिया की नदिया पर, नाव चली रे।
सोया है नन्हा नटखट, मूरत यह भली रे।
निंदिया की नदिया पर।

तारों की दुनिया में, जाकर तू रहना।
मोतियों के ठंडे-ठंडे, झरनों में बहना।
किलकारियों से, महके मन सलोना।
तेरे जनम से ही, आशाएं फलीं रे।
निंदिया की नदिया पर, नाव चली रे।
सोया है नन्हा नटखट, मूरत यह भली रे।
निंदिया की नदिया पर।

सच की डगर है यह, कर्मों का मेला।
जीवन जिया उसने, हंसकर जो खेला।
कारवाँ हो पीछे, या हो अकेला।
काँटों की शय्या पर, खिली हो कली रे।
निंदिया की नदिया पर, नाव चली रे।
सोया है नन्हा नटखट, मूरत यह भली रे।
निंदिया की नदिया पर।

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