आज बरसने दो शोले आसमानों से,
या मारो विषबुझे तीर कमानों से।
जमा दो हिम में सारी सृष्टि को,
या सुखा दो बादलों में ही वृष्टि को।
बिछा दो मार्ग में भयंकर विघ्न,
या कर दो दुखों से जीवन उद्विग्न।
मचा दो विनाश का सर्वत्र हाहाकार,
या करो अट्टहास, भर लो हुंकार।
एक मानव है जो अब कभी न रुकेगा,
न डरेगा न सह्मेगा और न ही थमेगा।
हैं उसके पास अचूक शस्त्र, अभेद्य कवच,
मिथ्या नहीं यह उक्ति है बिलकुल सच।
है उसके पास करुण हृदय, तीक्ष्ण बुद्धि,
देगी जो उसे निःसंदेह सर्वसिद्धि।
संचित किया है उसने अपूर्व ज्ञान,
साक्षात् सदेह माँ सरस्वती का वरदान।
विकसित किया है उसने पुष्ट शरीर, पूर्ण स्वास्थ्य,
प्रबुद्ध वर्ग का है वह प्रिय आराध्य।
शुद्ध है उसका आचार विचार पवित्र,
निष्कलंक, अनिन्द्य है उसका चरित्र।
और सबसे बढ़कर है उसका आत्मबल,
जो झुकता है उसके चरणों में हर ध्येय,
और बनता है उसे -
अनाहत, अक्षुण, अपराजेय।।
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