प्रेम एकमात्र मार्ग है
उस विषाद से दूर रहने का
जिसे 'उसने' पैदा किया है
और एक रोग हमें दिया है
दार्शनिकता नाम का
अपनी तुच्छ मनुष्यता को
उठाने का
समतुल्य स्रष्टा के
जिसे हमने अपने हाथों से बनाया है।
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