आज साँझ
जब क्षितिज पर
कपासी बादलों को
टुकड़े टुकड़े होकर
बिखरते हुऐ देखा
तो
न जाने किस भावना के
वशीभूत होकर
ऊद्धव को
गोपियों के पास भेजने वाले
उस कृष्ण की याद आ गई
जो अपने अंतिम दिनों में
निपट अकेले
भटक रहे थे।
और मैं अकस्मात्
आँसुओं में भीग गया।
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इस छोटे कलेवर की कविता में आपने पूरे एक युग के यथार्थ को समेटने का प्रयास किया है. बहुत खूब. धन्यवाद मित्र.