खुले आसमान में इसे उड़ जाने दो Poem by Anubha jain

खुले आसमान में इसे उड़ जाने दो

ये कहती है, छु सकती है आसमान
पंख इसे फ़ैलाने दो,
पिंजरे में कैद न रखो,
जमीन से ऊपर पाओं उठाने दो,

इसकी बाहों में ताकत कम सही,
पर दिल में हौंसला बहुत है
ये नारी इस युग की,
कट्टर सोच बदल देगी, एक इंकलाब इसे लाने दो

इसका धैर्य इसकी खामोशी, इसकी कमजोरी नहीं,
शीतल नदी सा बहना सीखा है इसने,
ये लक्ष्मी है, ये सरस्वती है,
आज जरूरत है, तो दुर्गा, काली इसे बन जाने दो,

बहुत झुका लिया कर्तव्यों के नाम पे इसे,
अब अपने सम्मान के लिए इसे उठना है,
तोड़ देगी झूटी मर्यादा की बेड़ियां अब ये,
अब खुले आसमान में इसे उड़ जाने दो ।

Thursday, April 23, 2015
Topic(s) of this poem: women empowerment
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