आज जो एक हिस्सा है इस बदरंग बाजार का
गुलाबी रंग था कभी उस प्यार का
परिवार के लिए रोटियां जुटाता
सपनों को बंद कर मेज की दराज में,
सिसकती आंखों से मुस्कुराता
वो प्यार,
सुलग-सुलग कर अंधेरी रातों में
जीने की राह दिखाता
चूल्हे चौके में घुटती जवानी
किसे पड़ी है जो सुने
तवे से जलते हाथों की कहानी
कूड़े करकट सी बेकीमत लावारिस भावनाएँ
कुछ जानी कुछ अनजानी
झाड़ी जाएँगी आँगन से बाहर
सूख जायेगा आँखों का पानी
आज जो गवाह बना है
इस दर्द के बनाव- सिंगार का
हाय,
गुलाबी रंग था कभी उस प्यार का
हरे मखमली बुग्याल में बादलों के तले
पीठ से पीठ टिका कर
सपने बुनना फिर अचानक
झूठ मूठ झगड़ कर,
चिढ़ा कर,
भाग जाना जीभ दिखा कर
हाथ से गिरकर काँच का बिखर जाना
आँखों में सागर छुपा कर
कांपती आवाज से
भारी सीने से मुकर जाना
फिर समेट कर टूटे टुकड़े
जख्मी हाथों से चुपचाप निकल जाना
अँधेरे को आगोश में भर कर
वो देख रहा था तमाशा अपनी हार का
पर जानते हो?
गुलाबी रंग था कभी उस प्यार का
हर सुबह चूम कर उठाती थी
रोते हुए लाल को, बना कर बांहों का झूला
झुलाती थी
खिला कर भरपेट, थपक थपक सुलाती थी
ईश्वर जाने कब खाती थी?
देर शाम को आता था
सोते हुए गाल को चूम, मुंह अँधेरे ही
निकल जाता था
अपनी हड्डियों का इस्पात गला कर
वो सीढियां बनाता था
जिसने शाप दिया है
बूढ़ी आँखों को इन्तजार का
कमाल है न, गुलाबी रंग था कभी उस प्यार का
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