उठाये चल रहे हैं हथेली पर ज़िन्दगी को बड़ा संभल,
ना जाने कैसे वक़्त दौड़ पड़ा, ना जाने पल कैसे बिछड गए...
मिनट - घंटों में, घंटे दिनों में, दिन महीनो और महीने साल में बदल गए...
एक और वर्ष ज़िन्दगी के पन्नो में दब गया, एक और कदम ज़िन्दगी से फिसल गया...
कुछ सपने पुरे हुए, कुछ अधूरे रह गए,
कुछ सपने नए आये, आशा को आँखों में फिर पिरो गए...
कुछ तर्क तर गए अनुभव के भवर में, कुछ तर्क आभास बन रह गए,
कई सवाल सुलझ गए और कई जवाब सवाल बन गए.
सामने का कोहरा कुछ छटता गया, छूटा पथ फिर धूल बटोरता गया
इरादों को मज़बूती मिली अनुभव की, शरीर लेकिन कमज़ोर पड़ता गया.
सीखा जो कई सबक नए, तो कभी पढ़े हुए सबक से फिर सीख मिली.....
कुल मिलाकर... हम रह गए ज़िन्दगी सजाने और सवारने में,
और मौत ने ज़िन्दगी से एक साल फिर चुरा लिया.....
Dil ko choo jane wal ek sunder kavita...................................10
एक और वर्ष ज़िन्दगी के पन्नो में दब गया, एक और कदम ज़िन्दगी से फिसल गया... Another beautiful piece, congrats dear poet.
आज फिर आपकी कविता 'आज मौत ने एक साल फिर ज़िन्दगी से चुरा लिया' पढ़ने a अवसर मिला. इसके ज़रिये आपने जीवन में क्या पाया क्या खोया जैसे ख्यालों पर दार्शनिक दृष्टिकोण से विचार किया है. जन्मदिन के मौके पर अच्छा विचार- विमर्श.
जन्मदिन के अवसर पर मन को उद्वेलित करने वाले कुछ विचार आश्चर्यजनक व अनोखे हैं जो पाठक को कुछ सोचने पर विवश करते हैं. ऐसे में हम पल पल घट रही ज़िंदगी को और अधिक सकारात्मक व उद्देश्यपूर्ण बनाए रखने की दिशा में क़दम बढ़ाएं, यही प्रेरणा मिलती है. धन्यवाद, असीम जी. एक और वर्ष ज़िन्दगी के पन्नो में दब गया, एक और कदम ज़िन्दगी से फिसल गया... इरादों को मज़बूती मिली अनुभव की, शरीर लेकिन कमज़ोर पड़ता गया.
Jo log sajaate hain sanwarte hain kisi ki zindagi aksar unhi k hathon ye kam ata h jinki khudki zindagi bikhri hoti hai jaise diya roshan pure ghar ko krta magar diye tale hota h to bas andhera......khoobsoorat kavita beshak....thank you for sharing :)
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Badita Kavita hai, maza aagaya! ! !