Aake Kanha Phir Se Bansi Baja De Poem by Vikas Kumar Giri

Aake Kanha Phir Se Bansi Baja De

आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे
कलयुगी गोपियों को फिर से नचा दे
आके कान्हा तू फिर से बंशी बजा दे

कर रहे भष्ट्राचार और भष्ट्राचारियों को तू सजा दे
बढ़ रहे अत्याचार और अत्याचारियों को मिटा दे
आके कान्हा फिर तू फिर से बंशी बजा दे

बात बात पे होती है गंगा, यमुना की सफाई की बात रे
हुई न आज 70 बरसो में साफ रे
फिर से तू आके इसे निर्मल करवा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

लाज तू इस कलयुगी द्रोपदी का बचा दे
लचरे और लाचार हुए कानून व्यवस्था का सुधार करवा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

फिर से तू वही धुन तू सुना दे
आर्यावर्त के लोगो को फिर से झुमा दे
वेरी हो गए लोग एक दूसरे के
उसको आके प्रेम का पाठ पढ़ा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे

अब तो मोहे लगी तोह पे ही आस रे
दुनिया का एकमात्र तू ही विशवाश रे
आके इस युग कलयुग का उद्धार करवा दे
आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे.....

~विकास कुमार गिरि

Monday, August 14, 2017
Topic(s) of this poem: god
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Hindi poem on krishna
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 14 August 2017

Beautifully painted the pictures of present society -its problems and remedy. He is God Krishna who can save us from injustice. Let it be quoted some line... लाज तू इस कलयुगी द्रोपदी का बचा दे लचरे और लाचार हुए कानून व्यवस्था का सुधार करवा दे आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे Thanks for sharing.

1 0 Reply
Vikas Kumar Giri 15 August 2017

Thank you very much sir

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Kumarmani Mahakul 14 August 2017

Beautifully painted the pictures of present society -its problems and remedy. He is God Krishna who can save us from injustice. Let it be quoted some line... लाज तू इस कलयुगी द्रोपदी का बचा दे लचरे और लाचार हुए कानून व्यवस्था का सुधार करवा दे आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे Thanks for sharing.

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