Chedni Hai Hind Me Hak Ki Ladai Poem by Vikas Kumar Giri

Chedni Hai Hind Me Hak Ki Ladai

छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई फिर से हो जाओ एक हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
किसी के बहकावे में हम नहीं आएंगे भाई
अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई

बहुत हुई जाती, धर्म और मज़हब के नाम पर लड़ाई
राजनीती करने वाले और दूसरे मुल्कों ने हमें लड़ा के हम लोगो में दूरियां बढ़ाई
अब हम मिलकर रहेंगे अपने हक़ के लिए लड़ेंगे
क्योंकी बहुत सहा हमने जुदाई
अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई

~विकास कुमार गिरि

Tuesday, August 15, 2017
Topic(s) of this poem: country
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Vikas Kumar Giri

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Laheriasarai, Darbhanga
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