कभी जो मै रुठु तो तू मनाए
कभी जो तू रूठे तो मैं मनाऊं
चलती रहे इसी तरह जिन्दगानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....
खेल-खेल में कभी तू जीते
तो कभी मै हारू
कभी तू प्यार से मुझे मारे
तो कभी मै तुझे मारु
कभी तू मेरे साथ करे शरारत कभी करे मनमानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....
ये सोना चांदी तो धातु ऐसी जिनकी बाजारो मे लगती कीमत
जिसके पास हो पैसे उन्हें ही इसे
खरीदने की होती चाहत
इनसे तो हमारी दोस्ती अच्छी जिनमे ना है रंग, वर्ण और जाती-धर्मो का बंधन
जिनकी लगती हो बाजारों में कीमत
उनसे क्या दिल लगानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....
जब कोई दिक्कत हो तो तू ही काम आए
कठिन परिस्तिथियों में तू हमें समझाए
अच्छे काम के लिए तू हमेशा सराहे
तो कभी किसी के सामने मेरा मजाक उड़ाए
मै आज जो कुछ भी हूँ दोस्त तेरी ही मेहरबानी रे
दोस्त तू ही सोना चांदी रे.....
-विकास कुमार गिरि
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