भूखे, गरीब, बेरोजगार, अनाथो और लाचार की दास्तान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|
एक ही कपड़े में सारे मौसम गुजारनेवाले
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माँ अगर तू जन्म न देती तो मैं दुनिया ही न देख पाता
माँ तू खुद भूखी रहकर खिलाई ना होती तो मैं भूखा ही रह जाता
अगर तू चलना न सिखाती तो मैं चल नहीं पाता
माँ अगर तू लोरी गा के सुनाइ ना होती तो मैं चैन से सोया नहीं होता|
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आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे
कलयुगी गोपियों को फिर से नचा दे
आके कान्हा तू फिर से बंशी बजा दे
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तुझे कुछ होने पर जिसका
कलेजा छलनी हो जाता
वो होती है माँ
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क्या लिखूं
ये बेवजह कोरोना का कहर लिखूं
या लाशों का शहर लिखूं
लोगो का तड़पना लिखूं या
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ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे
अपनी रोजी रोटी की तलाश में
मैं भी पढना लिखना चाहता हूं साहब
मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूं साहब
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छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई फिर से हो जाओ एक हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
किसी के बहकावे में हम नहीं आएंगे भाई
अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई
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दुनिया में होते है ये सबसे महान
जिसकी करते है सभी गुणगान
'गुरु विश्वामित्र, बशिष्ठ, अत्रि'
जिसको पूजते स्वयं भगवान
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लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S
बनते देखा है,
बिजली की चकाचौंध में मैंने बच्चे को
बिगड़ते देखा है,
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दिल की बस यही तमन्ना थी, अब लब पर
आ ही गई है
होठ कुछ कहे या न कहे इशारे सब कुछ
समझा ही गई है
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