Vikas Kumar Giri Poems

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भूखे, गरीब, बेरोजगार, अनाथो और लाचार की दास्तान लिखने आया हूँ
हाँ मैं आजाद हिंदुस्तान लिखने आया हूँ|

एक ही कपड़े में सारे मौसम गुजारनेवाले
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2.
Maa Tu Jagai Na Hoti To Mai Soya Hi Rah Jata

माँ अगर तू जन्म न देती तो मैं दुनिया ही न देख पाता
माँ तू खुद भूखी रहकर खिलाई ना होती तो मैं भूखा ही रह जाता
अगर तू चलना न सिखाती तो मैं चल नहीं पाता
माँ अगर तू लोरी गा के सुनाइ ना होती तो मैं चैन से सोया नहीं होता|
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3.
Aake Kanha Phir Se Bansi Baja De

आके कान्हा फिर से बंशी बजा दे
कलयुगी गोपियों को फिर से नचा दे
आके कान्हा तू फिर से बंशी बजा दे
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तुझे कुछ होने पर जिसका
कलेजा छलनी हो जाता
वो होती है माँ
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5.
कोरोना का कहर (Corona Ka Kahar)

क्या लिखूं
ये बेवजह कोरोना का कहर लिखूं
या लाशों का शहर लिखूं
लोगो का तड़पना लिखूं या
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ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे
अपनी रोजी रोटी की तलाश में
मैं भी पढना लिखना चाहता हूं साहब
मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूं साहब
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7.
Chedni Hai Hind Me Hak Ki Ladai

छेड़नी है हिन्द में हक़ की लड़ाई फिर से हो जाओ एक हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
किसी के बहकावे में हम नहीं आएंगे भाई
अब हम नहीं करेंगे कभी भी लड़ाई
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8.
Mere Guruwar

दुनिया में होते है ये सबसे महान
जिसकी करते है सभी गुणगान
'गुरु विश्वामित्र, बशिष्ठ, अत्रि'
जिसको पूजते स्वयं भगवान
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लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S
बनते देखा है,
बिजली की चकाचौंध में मैंने बच्चे को
बिगड़ते देखा है,
...

दिल की बस यही तमन्ना थी, अब लब पर
आ ही गई है
होठ कुछ कहे या न कहे इशारे सब कुछ
समझा ही गई है
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