अपना ही फ़साना.. apna hi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अपना ही फ़साना.. apna hi

Rating: 5.0

अपना ही फ़साना

में वोही हु, जो तुम देख रही हो
ख्वाबो मे ही ख्वाब अपना बुना रही हो
में अक्सर आ जाया करता हु
तेरे साथ तेरा साया, बनकर घूमता हु

आंसू भी है तेरे और सपने भी तेरे
फिर लगा लेंगे कभी भी फेरे
मन से मीत, तुम मिल ही गए हो
चाँद से बनी चांदनी, मेरी बन गए हो

आइना में शकल अपनी, कभी तुम ना देखो
जो भी बात है दिल में, अपने पास ही रखो
आइना सच बोल देगा, रुसवाई का कारण बनेगा
तुम फिर भी मेरे हो, और कौन बनके रहेगा?

जमाने ने भी बहुत है हमें सिखाया
बाकी रहा जो किस्मत ने ही बनाया
आप जो आ चुके हो, मेंरे भाग्य के कारण
फिर छोड़ दो ये चिता, वो तो साथ सदा आमरण

रहे भाग्यशाली हम सदा
ये रहा हमारा, दिल से पूरा वादा
कर लेना पक्का दिलसे, मजबूत इरादा
न कहना कभी दिल से, तू दूर चला जा

हम साथी बने प्यार से, इनकार नहीं है
ये रहा हमारापन, बस दिल से एक्र्रार ही है
चल पड ना साथ मेरे, सोच पीछे छोड़ आना
फिर क्यों हो जाए, वो अपना ही फ़साना

COMMENTS OF THE POEM

??? ???? ??, ?? ??? ??? ??? ?? ?????? ?? ?? ????? ???? ???? ??? ?? ??? ????? ? ???? ???? ?? ???? ??? ???? ????, ???? ????? ??

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success