दांव पर लग गयीं है.. Daav Par Lag Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दांव पर लग गयीं है.. Daav Par Lag

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दांव पर लग गयीं है

मेरे मन का शेतान जाग उठा
मैंने क्या सोचा था ओर क्या कर बैठा?
एक नन्ही कली को मैने मसल दिया
जिया काँप तो उठा पर उसका कत्ल कर दिया।

मेरी बच्ची सी थी ओर फड़फड़ाती रही
जानती वो कहाँ थी वो तो कराहती रहीं
में शैतान का रुप धारण किये मस्त था
दिन के उजाले मे भी सुरज अस्त था।

में देखता रहा उसके मासूमियत का निखार
बस वो तो निष्प्राय थी जमीं पर होकर जंगालियत क़ा शिकार
मेरे मन में ऐसा क्यों उठा विकार?
अब मुझे भुगतना होगा लोगों का तिरस्कार!

मैंने तो सिर्फ अनुकरण कीया हैं
ये तो सिर्फ उदाहरण दिया है
असली हकीकत तो इस से भी बदतर है
मरे जैसे हैवान गिनती से भी ज्यादातर हैं।

लड़की का घर से बहार जाना अभिशाप है
छोटी लड़की का पड़ोस में खेलना भी पाप हैं
किसी पे भरोसा रखना तो दूर की बात हैं
जवान तो हैवान बन चुके है ही पर बूढ़े भीं शेतान क़े बांप हैं।

सब लोग आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है
लड़की के सन्मान पर दाग लगा रहै है
वो भूल गए है ही उनकी गंगौत्री माता है
स्त्री का हर रूप शिरोधार्य और सुहाता है।

आजकल हम भी चिंतित रहते है
उनका बहार समय व्यतीत करना मन को घेरते रेहतें हैं
इज्जत की लूट आजकल सामन्य बात हो गयी है
कायदा खी व्याखया अमान्य बनकर रह गयीं हैं।

हम जंगालियत की चरमसीमा पर हैं
किसी को क़ुछ भी कह्ना हानी पहुँचाना हैं
सब आँखे मूंदकर आगे बढ़ जाते है
स्त्रीयां अपनी बरबादी पर सिर्फ आँसू ही बहाती हैं।

हमारा मनोबल अधोगति पर हैं
हम मिसाल देते हैं और प्रगति के गुणगान करते है
स्त्री सन्मान खी बात अब इतीहास बन गयीं हैं
भारत की शाख अब दांव पर लग गयीं है

Wednesday, May 14, 2014
Topic(s) of this poem: POEM
COMMENTS OF THE POEM

Pawan Jain UMDA 13 hours ago · Unlike · 1

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Hasmukh Mehta welcome gp maurya, durcharan mehta, dupta kumar sahni n laxmikant 3 secs · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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