Dilli Metro Poem by Jasbir Chatterjee

Dilli Metro

Rating: 5.0

दरवाजे खटाक से खुले
और मैं भीतर आयी...
कैसा भला सुखद अनुभव था
हट कर दूर चले आना
उन्मत्त भीड़ से,
धूँयें और ट्रैफिक की मारामारी से,
ड्राईवरों की मनमानी झेलती
ब्लूलाइन बसों से,
सड़कों पर मंडराने वाले आवारा पशुओं से...

दरवाजे बंद हुये
और मेट्रो ने सरकना शुरू किया..
कैसा भला सुखद अनुभव था
हट कर दूर चले आना
चिलचिलाती धूप से,
बिजली की तड़पाने वाली लंबी कटौतियों से,
छोटी किंतु डंक मारती चिंताओं से,
प्रतिदिन की वह नीरस दुनियादारी से...

बैठ गई मैं एक सीट को खाली पाकर...
कैसा भला सुखद अनुभव था
यहाँ देखना
सब कुछ कितना साफ-स्वच्छ था,
एक खरोंच भी नहीं दिखाई पड़ती थी,
लेशमात्र भी धूल नहीं थी,
पागलपन में दीवारों पर जो खुरचे हों
ऐसे भी संदेश कहीं न दिखते थे....

इसी तरह आराम से बैठे बैठे
मैंने दिवास्वप्न यह देखा
कैसा भला सुखद अनुभव था
मन में मेरे घुमड़ रहे थे
ख़यालात दिलचस्प अनेकों
ज्यों नटखट हुड़दंगी बच्चे
झूला झूल रहे हों नभ पर,
या हवाओं में उड़ते बादल उनकी बनें सवारी
अथवा जैसे हरी घास पर दौड़ रहे हों सारे...


लीजिये मैट्रो रुकी
और नींद से सहसा जैसे जाग उठी थी....
कैसा लगा ज़ोर का झटका
यह जान कर
मेरा ठिकाना आ पहुंचा था....
मेरे सामने की सीटों पर
नव-विवाहित जोड़ा इक अविचल बैठा था
एक दूसरे में बरबस खोया खोया सा
संसार की हर शय से बिल्कुल बेख़बर....

दरवाजे खटाक से खुले
और मैं बाहर आयी....
कैसा भद्दा और विरोधाभासी अनुभव था
वापिस आकर
उसी उन्मत्त भीड़ में,
धूँयें और ट्रैफिक की मारामारी में,
ड्राईवरों की मनमानी झेलती
ब्लूलाइन बसों में,
सड़कों पर मंडराने वाले आवारा पशुओं में...

This is a Hindi translation of my poem 'The Delhi Metro.'

Translator's name: Rajnish Manga

Translation date: 27 October 2014

This is a translation of the poem The Delhi Metro by Jasbir Chatterjee
Tuesday, October 28, 2014
Topic(s) of this poem: train
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 28 December 2020

Ma'am this is really beautiful poem. Your poem really catches the traffic tyranny of Delhi and on top how metro is so soothing.

0 0 Reply
Sharad Bhatia 28 December 2020

M'am, first of all How are you? Secondly, very beautiful Hindi translation of very beautiful poem. Regards -

0 0 Reply
Rajnish Manga 28 December 2020

It's a pity that the readers' Hindi comments have converted into a series of question marks. I don't know what has happened to PH since the new format has been introduced. When the Hindi poem can be shown as it is without any difficulty then what could possibly be the problem?

1 0 Reply
Varsha M 28 December 2020

Yes Sir even I faced the same tyranny. Very bad.

0 0
Jaya Agarwal 05 February 2018

दरवाजे बंद हुये और मेट्रो ने सरकना शुरू किया...Beautiful

0 0 Reply
Rajnish Manga 07 February 2015

उक्त कविता में दिल्ली के जीवन की, प्रदूषण की, भीड़-भड़क्के और धक्कामुक्की, सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं की झाँकियाँ मिलती हैं. इनके बीच मैट्रो ट्रेन के सफ़र का सुकून हर आदमी के लिए यादगार बन जाता है. दिल्ली की लाइफ लाइन बन चुकी मैट्रो पर इतनी सुंदर कविता प्रस्तुत करने के लिए मैं उन्हें धन्यवाद व बधाई देता हूँ. कविता इतनी प्रभावोत्पादक है कि मैं इसका अनुवाद करने से स्वयं को न रोक सका. इस अवसर पर मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ.

1 0 Reply
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