दूसरों के लिए Dusron Ke Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दूसरों के लिए Dusron Ke

दूसरों के लिए

दूसरे की शादी में आप बन जाते दीवाने
दीखते बिलकुल नटखट ओर दीवाने
कोई कहता क्या जूनून है इस उम्र में भी
बस इसी तरह से भी पेश आएंगे कब्र में भी।

क्या ढूंढते है लोग उस राख में
जहाँ उन्हें मिल जाना है बाद में
बाद में सोच आती है अच्छे आदमी के लिए
कभी नहीं भरी हामी उसके अंतिम क्षण के लिए।

क्यों तलाश है तुम्हे अच्छे लोगों की?
जिनकी आप पेहचान ते नहीं तनिक भी
फिर भी चाह है की अच्छा परिचय हो जाए
अपनी भी खासियत दिखाई दे और नाम हो जाए।

खुद भूल जाते की उनका जीवन एक पानी बुलबुला है
नहीं पता किसी को और अंत खुला सच है
नहीं कर पाए जिंदगी में कुछ दूसरों के लिए
और भेट चढ़ गए गुमनामी के समंदर में।

कोई बात नहीं 'देर आये दुरस्त आये'
सब के विचार आपको भाये
कुछ तो सोचा आपने अच्छे आदमी की तलाश के लिए
अपना बाक़ी जीवन बिताने दूसरों के लिए।

दूसरों के लिए Dusron Ke
Monday, December 5, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 December 2016

x jairam tiwari Unlike · Reply · 1 · Just now toda

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Mehta Hasmukh Amathalal 05 December 2016

R K Khandhar RK Awesome ji Unlike · Reply · 1 · 1 min

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Mehta Hasmukh Amathalal 05 December 2016

welcome r k kandhar Unlike · Reply · 1 · 1 min

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Mehta Hasmukh Amathalal 05 December 2016

कोई बात नहीं देर आये दुरस्त आये सब के विचार आपको भाये कुछ तो सोचा आपने अच्छे आदमी की तलाश के लिए अपना बाक़ी जीवन बिताने दूसरों के लिए।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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