दुविधा
घेर लिया मुझे, वापसी के वक्त. छह या सात होंगे वे. सभी
हथियारबंद. जाते हुए ही लगा था मुझे
कुछ बुरा होने को है. खुद को मानसिक तौर पर
तैयार किया मैंने, कि पहला हमला मैं नहीं करूँगा.
एक लुटेरे ने आस्तीन पकड कर कहा: लडकी चाहिए क्या?
मामा! चाल छोड कर यहाँ कैसे?
खुद को शांत रखने कि कोशिश मे भींचे हुए दाँत.
ठीक उसी पल ठुड्डी पर एक तेज़ प्रहार
और महसूस किया मैंने, गर्म, रक्तिम, झाग का प्रवाह.
एक झटका सा लगा, और बैठ गया मैं. गश खाकर.
एक खंजर की चमक; हैलोजन की तेज़ रोशनी का परावर्तन
और एक फ़लक पर राम, और दूसरी पर काली के चिन्ह.
तुरन्त छँट गयी भीड. ईश्वरीय सत्ता की शक्ति
शायद कोई नहीं जान सकता. जिन्नातों की-सी व्यवहारिकता:
मानव-मन की दुविधा- प्रेम से प्रेम नहीं कर सकता.
वे छह-सात लोग, घेर रखा था जिन्होने मुझे;
रहस्यमयिता से गायब हो गये.
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